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Sunday, 11 January 2015

So Jata Hun Akshar Ye Sochte-Sochte | सो जाता हूँ अक्सर ये सोंचते-सोंचते

सो जाता हूँ अक्सर ये सोंचते-सोंचते
वो मेरे बारे में सोंचते है कि नहीं,


ठहर जाता हूँ, हर जगह जहाँ वो मिले
उनके कदम उस जगह वो रोकते है कि नहीं,

खाना तो सुकूं से आज भी खा हि लेता,
अटक गया कोर सोचकर उसने खाया होगा कि नहीं,

सो जाता हूँ अक्सर ये सोंचते-सोंचते
वो मेरे बारे में सोंचते है कि नहीं,

हर एक साँस पे है एहसास जिनका
उनके लबों पे मेरा नाम है कि नहीं

दिले जख्म गहरा दिखाऊ किसे और कैसे
दर्द बढता ही जाए वक्त बीते जैसे जैसे,

खबर मुझको आकर कोई ये सुना दे मुझे
जगह उसके दिल मे मेरी है कि नहीं,

सो जाता हूँ अक्सर ये सोंचते-सोंचते
वो मेरे बारे में सोंचते है कि नहीं।





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